इस लेख में हम Shiv chalisa और Shiv tandav lyrics के साथ शिव तांडव की महिमा एवं पाठ विधि दे रहे हैं। शिव जी के विभिन्न स्तोत्रों और पाठों में इसका बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है यह सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है।
शिव जी की विधिवत पूजा करने के बाद इसका पाठ किया जाता है, परंतु समर्थ ना होने पर स्नानादि प्रारंभिक क्रियाएं पूरी करके तांबे के लोटे में गंगाजल या शुद्ध जल लेकर के उसमें थोड़े से अक्षत, रोली, सफेद पुष्प, चंदन मिलाकर ओम नमः शिवाय मंत्र को पढ़ते हुए शिवलिंग पर वह जल चढ़ा दें और इसके बाद हाथ में एक सफेद पुष्प लेकर शिव तांडव का पाठ कर पुष्प Shiv ji पर चढ़ा दें। भोलेनाथ छोटी सी सेवा से भी प्रसन्न होने वाले देवता है।
॥दोहा॥
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
Shiv chalisa,शिव चालीसा -
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई।निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा
- नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
- तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
- मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
- स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
shiv tandav lyrics -
वेद पुराण उपनिषद तथा संहिताओं में शिव जी के बहुत से स्तोत्र एवं स्तुतियां मिलती है लेकिन उनमें दशानन रावण द्वारा रचित shiv tandav स्त्रोत का अपना एक अलग महत्व है इसके बारे में शास्त्रों में भी बहुत महिमा बताई गई है।
इस स्तोत्र का पाठ हर महीने आने वाली शिवरात्रि तथा शिवरात्रि से एक दिन पहले यानी प्रदोष के दिन इसका पाठ करना बहुत ही लाभदायक माना गया है। शिव तांडव का पाठ अगर किसी शिवालय या शिव मंदिर में किया जाए यह बहुत ही उत्तम होता है।
इस शिव तांडव पाठ के बाद हम एक और स्तुति दे रहे हैं जिसका पाठ शिव तांडव पाठ के बाद कर लेने से आपकी पूजा और भी उत्तम हो जाती है ।
Shiv tandav, शिव तांडव पाठ -
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥1॥
जटाकटा हसम्भ्रम भ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
विलोलवी च वल्लरी विराजमान मूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोर चन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥2॥
धराधरेन्द्रनन्दिनी विलास बन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्तति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥3॥
जटा भुजङ्ग पिङ्गल स्फुरत्फणा मणिप्रभा-
कदम्बकुङ्कुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे।
मदान्ध सिन्धु रस्फुरत्त्व गुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥4
सहस्रलोचन प्रभृत्य शेषलेख शेखर ।
प्रसून धूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रि पीठभूः।
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक:
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः॥5॥
ललाट चत्वरज्वल द्धनञ्जय स्फुलिङ्गभा-
निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधा मयूखलेखया विराजमान शेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु नः॥6॥
कराल भाल पट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वलद
धनञ्जयाहुती कृत प्रचण्ड पञ्चसायके।
धराधरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्र पत्रक
प्रकल्पनैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥7॥
कदा निलिम्पनिर्झरी धरस्तनोतु सिन्धुरः
कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः॥8॥
प्रफुल्ल नीलज् पङ्कज प्रपञ्च कालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठ कन्दली रुचि प्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्ध कच्छिदं तमन्त कच्छिदं भजे॥9॥
अखर्व सर्वमङ्गला कला कदम्बमञ्जरी-
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणा मधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥10॥
जयत्वदभ्र विभ्रम भ्रमद्भुजङ्गमस्फुर
द्धगध्दगध्दि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट
धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनिन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल-
ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः॥11॥
दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो-
गर्रिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविन्द चक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे॥12॥
कदा निलिम्पनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसनवि
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।
विमुक्त लोललोचनो ललामभाल लग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥13॥
इमं हि नित्यमेव मुक्त मुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्॥14॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं
सदैवसुमुखिं प्रददाति शम्भुः॥15॥
शिवजी की आरती के लिए इस लिंक को खोलें यहां पर शिवजी की दो आरतीयों के साथ आपको एक वीडियो भी मिलेगा। दोनो आरतियां बहुत ही सुंदर और अद्भुत है -
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शिव स्तुति -
वंदे शंभू उमापतिं सुरगुरु। वंदे जगत कारणं॥
वंदे पन्नग भूषणम् मृगधरं। वंदे पशुनां पतिं ॥
वंदे सूर्य शशांक वन्हिनयनं । वंदे मुकुंद प्रियम ॥
वंदे भक्तजनाश्रयं वरदं । वंदे शिवम शंकरं ॥
🪷धन्यवाद🪷