Batuk bhairav एक ऐसी शक्ति है जिनके अंदर सभी भैरव स्वरूप समाहित है। अगर आप किसी ऐसे साधना के विषय में जानना चाहते हैं जिसके करने से आपके सभी कार्य इस एक ही साधना से पूर्ण हो जाए चाहे वह शत्रु स्तंभन हो उच्चाटन हो, वशीकरण या फिर धन प्राप्ति आपके सभी उद्देश्य बस एक साधना से ही पूर्ण हो जाए तो वह है बटुक भैरव साधना। इसीलिए आज हम इस लेख में हम आपको Batuk bhairav stotra के साथ ही संपूर्ण बटुक भैरव मंत्र विधान, बटुक भैरव चालीसा एवं साधना विधि तथा बटुक भैरव जी की उत्पत्ति के बारे में बता रहे हैं।
भैरव जी की उत्पत्ति -
चंड मुंड और रक्तबीज नामक असुरों का संहार करने के बाद माता महाकाली क्रोध के कारण अनियंत्रित हो गई तब माता को शांत कराने के लिए शंकर भगवान उनके चरणों में लेट गए थे।
उस वक्त माता का क्रोध तो शांत हो गया लेकिन उन्होंने शंकर जी से यह वचन लिया कि आप कभी भी मेरे चरणों के नीचे नहीं लेटेंगे ।
इसके बाद फिर से एक बार दारुक नामक राक्षस और उसकी संपूर्ण सेना का वध करने के बाद माता महाकाली का क्रोध अनियंत्रित हो गया उस समय मां काली का क्रोध शांत करने के लिए भगवान शिव से एक बालक उत्पन्न हुआ जिसकी उम्र की अवस्था पांच वर्ष कि थी तथा जिसका स्वरूप बिल्कुल भगवान शंकर के जैसा ही था।
वह बालक क्रोधित मां महाकाली के सामने जाकर मां मां कह कर रोने लगा उस बालक का करुण रुदन सुनकर मां काली का क्रोध बिल्कुल ही शांत हो गया और मां काली का ह्रदय करुणा और ममता से द्रवित हो उठा फिर माता ने उस बालक को गोद में उठाकर लाड प्यार किया,
भगवान शिव के उसी बाल स्वरूप को आगे चलकर दुनिया में बटुक भैरव के नाम से जाना गया।
- जानें कालभैरव के बारे में - काल भैरव का रहस्य
बटुक भैरव मन्त्रविधान ( रूद्रयामल तंत्रोक्त ) -
(1) विनियोग - ॐ अस्य श्री आपदुद्धारण-बटुकभैरव-मन्त्रस्य बृहदारण्यक ऋषिः, त्रिष्टुप्छन्दः, श्रीबटुकभैरवो देवता, ह्रीं बीजं स्वाहा शक्तिः, भैरवः कीलकं मम धर्मार्थं काममोक्षार्थं श्री बटुकभैरवप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।
(2) ऋष्यादिन्यास- बृहदारण्यकऋषये नमः (शिरसि), त्रिष्टुप्छन्दसे नमः (मुखे), श्रीबटुकभैरवदेवतायै नमः (हृदये), ह्रीं बीजाय नमः (गुह्ये), स्वाहाशक्तये नमः पादयोः), भैरवकीलकाय नमः (नाभौ), विनियोगाय नमः (सर्वांगे) ।
(3) कर- हृदयादिन्यास - ॐ हां वां (अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः), ॐ ह्रीं व्रीं (तर्जनीभ्यां नमः, शिरसे स्वाहा, ॐ हूं वूं (मध्यमाभ्यां नमः, शिखायै वषट्), ॐ हैं वैं (अनामिकाभ्यां नमः, कवचाय हुम्), ॐ ह्रौं वौं (कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्रत्रयाय वौषट् ), ॐ ह्रः वः (करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः, अस्त्राय फट् ) ।
(4) मन्त्रन्यास - ॐ ह्रां ह्रीं (अंगुष्ठा. हृदयाय.), ॐ ह्रीं बटुकाय (तर्जनी. शिरसे.), ॐ हं आपदुद्धारणाय (मध्यमा. शिखायै.), ॐ हैं कुरु कुरु (अनामिका., कवचाय.), ॐ ह्रौं बटुकाय ( कनिष्ठिका. नेत्र.), ॐ हः ह्रीं ( करतल अस्त्राय . ) ।
(5) बटुक भैरव ध्यान मंत्र-
करकलित-कपालः कुण्डली दण्डपाणि- स्तरुणतिमिरनीलो व्यालयज्ञोपवीती । क्रतुसमयसपथ-विघ्नविच्छित्तिहेतु- जयति बटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम्।।
बटुक भैरव का मंत्र -
- ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय हीं ।
(8) जपान्त में माला प्रार्थना
त्वं माले सर्वदेवानां प्रीतिदा शुभदा भव । शिवं कुरुष्व मे भद्रे, यशोवीर्यञ्च देहि मे ॥
(9) जप- समर्पण
अनेन श्रीबटुक भैरव मन्त्र जपाख्येन कर्मणा श्रीबटुकभैरवदेवः प्रीयताम्
Batuk bhairav stotra, बटुक भैरव ध्यान मंत्र -
वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।
दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः।।
दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।
हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्।।
- मूल-स्तोत्र
श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्।
रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः।।
कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः।
त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः।।
शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः।
अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी-पतिः।।
धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्।
नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्।।
कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः।
त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्।।
भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः।
धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु-लोचनः।।
प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः।
अष्ट-मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान-चक्षुस्तपो-मयः।।
अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः।
भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः ।।
कपाल-धारी मुण्डी च, नाग-यज्ञोपवीत-वान्।
जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा ।।
शुद्द-नीलाञ्जन-प्रख्य-देहः मुण्ड-विभूषणः।
बलि-भुग्बलि-भुङ्-नाथो, बालोबाल-पराक्रम ।।
सर्वापत्-तारणो दुर्गो, दुष्ट-भूत-निषेवितः।
कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी-वश-कृद्वशी ।।
जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया-मन्त्रौषधी-मयः।
सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ-विष्णुरितीव हि ।।
।।फल-श्रुति।।
अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः।
मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम् ।।
य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट-शतमुत्तमम्।
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा ।।
न शत्रुभ्यो भयं किञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्।
पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः ।।
मारी-भये राज-भये, तथा चौराग्निजे भये।
औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नजे भये ।।
बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः।
सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव-कीर्तनात्।।
घर के बाहर दरवाजे के बाईं ओर दो लौंग तथा गुड़ की डली रखें। मन्त्र इस प्रकार है-
“ॐ ह्रीं वं एह्येहि देवीपुत्र आपदुद्धारक बटुकनाथ कपिलजटा भारभासुर ज्वलत्पिंगलनेत्र सर्वकार्यसाधक मद्दत्तमिमं यथोपनीतं बलिं गृणूह गृणूह कर्माणि साधय साधय सर्वमनोरथान् पूरय पूरय सर्वशत्रून् संहारय ते नमः वं ह्रीं ॐ ।
श्री बटुक भैरव चालीसा -
॥ दोहा ॥
विश्वनाथ को सुमरि मन, धर गणेश का ध्यान।
भैरव चालीसा पढूं, कृपा करहु भगवान॥
बटुकनाथ भैरव भजूं, श्री काली के लाल।
मुझ दास पर कृपा कर, काशी के कुतवाल॥
॥ चौपाई ॥
जय जय श्री काली के लाला,
भैरव भीषण भीम कपाली,
क्रोधवन्त लोचन में लाली ॥
कर त्रिशूल है कठिन कराला,
गल में प्रभु मुंडन की माला।
कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला,
पीकर मद रहता मतवाला ॥
त्रैल तेश है नाम तुम्हारा,
चक्रदण्ड अमरेश पियारा ॥
शेखर चन्द्र कपाल विराजै,
स्वान सवारी पै प्रभु गाजै।
शिव नकुलेश चण्ड हो स्वामी,
बैजानाथ प्रभु नमो नमामी ॥
अश्वनाथ क्रोधेश बखाने,
भैंरो काल जगत न जाने।
गायत्री कहैं निमिष दिगम्बर,
जगनाथ उन्नत आडम्बर॥
चक्रनाथ भक्तन हितकारी,
संहारक सुनन्द सब नामा,
करहु भक्त के पूरण कामा ।
नाथ पिशाचन के हो प्यारे,
संकट मेटहु सकल हमारे॥
कृत्यायू सुन्दर आनन्दा,
भक्त जनन के काटहु फंदा ।
कारण लम्ब आप भयभंजन,
नमोनाथ जय जनमन रंजन ॥
हो तुम देव त्रिलोचन नाथा,
भक्त चरण में नावत माथा ।
त्वं अशितांग रुद्र के लाला,
महाकाल कालों के काला ॥
ताप विमोचन अरिदल नासा,
भाल चन्द्रमा करहिं प्रकाशा ।
श्वेत काल अरु लाल शरीरा,
मस्तक मुकुट शीश पर चीरा ॥
काली के लाला बलधारी,
कहां तक शोभा कहुं तुम्हारी।
शंकर के अवतार कृपाला,
रहो चकाचक पी मद प्याला ॥
काशी के कुतवाल कहाओ,
बटुकनाथ चेटक दिखलाओ।
रवि के दिन जन भोग लगावें,
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावें ॥
दरशन करके भक्त सिहावें,
दारुड़ा की धार पिलावें ।
मठ में सुन्दर लटकत झावा,
करमें सुभग सुशोभित कोड़ा ।
कटि घुंघरू सुरीले बाजत,
कंचनमय सिंहासन राजत ॥
नर नारी सब तुमको ध्यावहिं,
मनवांछित इच्छाफल पावहिं ।
भोपा हैं आपके पुजारी,
करें आरती सेवा भारी ॥
भैरव भात आपका गाऊँ,
बार बार पद शीश नवाऊँ ।
आपहि वारे छीजन धाये,
ऐलादी ने रुदन मचाये ॥
बहन त्यागि भाई कहाँ जावे,
तो बिन को मोहि भात पिन्हावे ॥
रोये बटुक नाथ करुणा कर,
गये हिवारे मैं तुम जाकर।
दुखित भई ऐलादी बाला,
तब हर का सिंहासन हाला ॥
समय ब्याह का जिस दिन आया,
प्रभु ने तुमको तुरत पठाया।
विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ,
तीन दिवस को भैरव जाओ ॥
दल पठान संग लेकर धाया,
सुर्ख चुन्दरी सिर धर दीनी ॥
भात भरा लौटे गुण ग्रामी,
नमो नमामी अन्तर्यामी।
जय जय जय भैरव बटुक,
स्वामी संकट टार ॥
कृपा दास पर कीजिए,
शंकर के अवतार॥
जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार।
उस घर सर्वानन्द हों,
वैभव बढ़ें अपार॥
FAQ -
- बटुक भैरव और भैरव जी में क्या अंतर है?
Ans - बटुक भैरव शिव के बाल स्वरूप हैं जिन्हें माता महाकाली ने पुत्र रूप में स्वीकार किया तथा भैरव जी शिव के युवा स्वरूप है ।
- बटुक भैरव किसके पुत्र है?
Ans - बटुक भैरव मां भगवती काली के पुत्र हैं ।
- बटुक भैरव का दिन कौन सा होता है?
Ans - रविवार और मंगलवार बटुक भैरव जी के उपासना के दिन है।
- बटुक भैरव का मूल मंत्र क्या है?
Ans - ऊपर इस लेख में हमने बटुक भैरव जी के संपूर्ण मंत्र और उनकी जप विधि विस्तार से लिखा है, कृपया उसे पढ़ें ।
- बटुक भैरव को प्रसन्न कैसे करें?
Ans - बटुक भैरव जी बहुत ही साधारण सी पूजा और नियमित जप से प्रसन्न होते हैं।
JAY MA KALI
ReplyDeleteJAY MA KALI
ReplyDeleteधन्यवाद 🌹
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