इस लेख में हम एक ऐसे रहस्यमय स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं जो चमत्कारों के लिए मशहूर है, यह स्थान भारत में सदा से ही चर्चा का विषय रहा है उस स्थान का नाम है kamakhya. मां Kamakhya devi temple के इतिहास के बारे में इससे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों और पहलू के बारे में भी हम आज आपको जानकारी दे रहे हैं।
Kamakhya devi story,कामाख्या देवी की कहानी-
शास्त्रों के अनुसार मां कामाख्या तीर्थ के बनने का एक इतिहास एक कहानी मिलती है जिसके अनुसार एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ किया उस यज्ञ में शिव जी को ना बुलाने पर माता सती क्रोधित हो गई और राजा दक्ष के यहां जाकर के उसी यज्ञ के हवन कुंड में माता सती ने आत्मदाह किया ।
उसके बाद भगवान शिव उनके जले हुए शरीर को लेकर उन्मत्त की दशा में पहुंच गए तब उनको शांत कराने के लिए विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के जले हुए शरीर के 52 टुकड़े किए वो कटे हुए अंग पृथ्वी पर जिस जिस भी जगह गिरे वहां पर माता शक्ति के शक्तिपीठों का निर्माण हो गया।
Kamakhya Devi temple history -
इस स्थान पर माता का योनि प्रदेश गिरा था, अतऎव मां कामाख्या मंदिर के गर्भ गृह में माता महामुद्रा रूप में विराजमान है। वैसे तो हमारे देश में मां भगवती के बहुत सारे सिद्ध स्थान हैं पर उन स्थानों में यह 52 शक्तिपीठ प्रमुख माने जाते हैं जहां शक्ति साक्षात स्वरूप में विराजमान हैं।
इन 52 शक्तिपीठों मे मां कामाख्या शक्तिपीठ जो आसाम के राजधानी दिसपुर से 8 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है जिसे कामाख्या क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। राजा विश्वसेन ने 1500 ई० में इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।
Kamakhya Devi temple importance for
Hindu's, हिंदू धर्म में कामाख्या देवी का महत्व -
जिस प्रकार पुरे भारत में होली, दीपावली, दशहरा इत्यादि पर्व, महाकुंभ जैसे महापर्व मनाया जाता हैं, उसी प्रकार पूर्वोत्तार भारत मे अंबुवाची मेले का महत्व है, जो कि मां कामाख्या के तीर्थ स्थान में मनया जाने वाला एक पर्व है।
इस मेले के दौरान देशभर से तांत्रिक, योगी, साधक साधना करने के लिए मां कामाख्या मंदिर में आते हैं। जून महीने में लगने वाले अंबु्वाची मेले में तीन दिनों के लिए मंदिर का कपाट अपने आप ही बंद हो जाता है उस दौरान मंदिर के गर्भगृह से लाल पानी बहता रहता है, इन तीन दिनों में माता रजस्वला रहती हैं।
Kamakhya Devi temple specific's
मंदिर के कपाट बंद होने से पहले श्रद्धालु भक्तों द्वारा गर्भ गृह में महा मुद्रा के ऊपर सफेद वस्त्र चढ़ाए जाते हैं जो कि कपाट खुलने के बाद प्रसाद रूप में भक्तों को दिया जाता है ।
मां कामाख्या मंदिर के कपाट भक्तों के लिए सुबह 8:00 बजे से लेकर दोपहर 1:00 बजे तक और दोपहर 2:30 बजे से लेकर शाम को 5:00 बजे तक खुला रहता है इस दौरान कोई भी श्रद्धालु जाकर कामाख्या माता के दर्शन कर सकते हैं।
- इसे भी अवश्य पढ़ें - मां तारा की कहानी
पूर्व समय में कई ऐसे ऋषि, तांत्रिक, साधक, योगी रहे हैं जिन्होंने इस स्थान पर तपस्या और साधना करके महान सिद्धियों को प्राप्त किया, महर्षि वशिष्ठ ने भी यहां आकर सिद्धि के लिए साधना की थी।
इनके अलावा लोना चमारी, इस्माइल जोगी यह कुछ प्रसिद्ध साधक है जिन्होंने यहां अमरता को प्राप्त किया । कामाख्या माता का तीर्थ एक ऐसा महान तीर्थ है जहां पर दक्षिणाचार (वैदिक) पद्धति से पूजा करने वाले और वामाचारी (तांत्रिक) पद्धति वाले दोनों में सामान रूप से यहां पर पूजा साधना करते हैं। वामाचार पद्धति द्वारा साधना करने वालों के लिए इस स्थान को स्वर्ग समझा जाता है।
- अभी जरूर जाने - मां काली एक अद्भुत शक्ति
FAQ -
- कामाख्या देवी का रहस्य क्या है?
- कामाख्या देवी मंदिर का कपाट साल में जून महीने में 3 दिनों के लिए बंद रहता है। मान्यता है कि इन दिनों में देवि रजस्वला रहती है। इन 3 दिनों में मंदिर के अंदर से लाल पानी बहता रहता है और ब्रह्मापुत्र नदी का पानी भी इन 3 दिनों के लिए लाल हो जाता है।
- कामाख्या मंदिर कब जाना चाहिए?
- वैसे तो साल के किसी महीने में भी कामाख्या देवी मंदिर का दर्शन महत्वपूर्ण माना गया है पर जून में लगने वाले अंबुबाची मेले के दौरान दर्शन करना सबसे बढ़िया है।
- कामाख्या में क्या प्रसिद्ध है?
- कामाख्या में देवी कामाख्या का मंदिर विशेषकर प्रसिद्ध है पर इस मंदिर के आसपास स्थित बहुत सारे ऐसे सिद्ध स्थान है जो बहुत ही प्रसिद्ध और दर्शनीय है।
- कामाख्या मंदिर महीने में कितने दिन बंद रहता है?
- कामाख्या मंदिर जून के महीने में 3 दिनों के लिए बंद रहता है इस दौरान माता रजस्वला रहती हैं।