इस लेख में हम maa tara के बारे में चर्चा करेंगे। वह tara maa जिनहें विपत्ति से उबारने वाली और इस संसार सागर से तारणे वाली कहा गया है, क्योंकि यह मृत्यु के बाद भी तारणे वाली शक्ति है। इन्हे नील सरस्वती, उग्रतारा और एकजटा के नाम से भी जाना जाता है। इस लेख में हम maa tara mantra के कुछ स्वरूपों का, उनके साधना पर भी चर्चा करेंगे।
Maa Tara story, मां तारा की उत्पत्ति -
एक बार जब माता सती को शिवजी ने राजा दक्ष के यज्ञ में जाने से रोका तब माता क्रोधित हो गई। माता को क्रोध में देख कर के शिव जी वहां से जाने लगे तब उनको रोकने के लिए माता ने दस रूप धारण किया और दसों दिशाओं में खड़ी होकर शिवजी को उस स्थान से जाने से रोक दिया।
उन्ही दसों रूपों को हम दस महाविद्या के नाम से जानते हैं। उन्ही दस महाविद्याओं में से एक maa tara हैं। मां तारा दस महाविद्याओं में दुसरे स्थान पर आती हैं।
इनके बारे में कहा जाता है कि महर्षि वशिष्ठ ने बहुत लम्बे समय तक इनकी साधना की थी पर जब इनकी सिद्धि प्राप्त नहीं हुई तब उन्होंने श्राप दे दिया था तब मां तारा प्रकट हुई और उन्हें महर्षि वशिष्ठ से कहा कि तुमने मुझे श्राप व्यार्थ में ही दिया क्योंकि तुम मेरी पूजा दक्षिणाचार पद्ति द्वार कर रहे थे जबकी मैं तो वामाचार से ही सिद्ध होती हूं। तब कहते हैं कि महर्षि वशिष्ठ ने तारापीठ में जाकर वहां वाममार्ग द्वारा मां तारा की सिद्धि प्राप्त की थी।
Maa Tara specific -
Maa tara की साधना श्मशान में करना विशेष फलदाई और अति शीघ्र सिद्ध होने वाला माना गया है, इसके लिए महाश्मशान ही उत्तम माना गया है जागृत श्मशान में भी पूजा और साधना करना शीघ्र फलदाई सबित होता है चक्रतीर्थ स्थान श्मशान उज्जैन और मणिकर्णिका श्मशान वाराणसी जाग्रत श्मशान कहे गए हैं। बंगाल के वीर भूमि जिले में तारापीठ का श्मशान महाश्मशान कहा गया है तंत्र साधना की षट्कर्म की सिद्धि इसी श्मशान में निहित कहा गया है मां तारा छणिक विनाश की देवी है जबकी मां काली को महाविनाश की देवी कहा गया है।
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भगवान राम, बुद्ध, ऋषि वशिष्ठ, महावीर, गुरु वशिष्ठ देव गुरु बृहस्पति ऋषि विश्वामित्र, महर्षि दधीच आदि महापुरुषों की तपोभूमि भी यह तारापीठ रही है।
इन सभी ने यहां साधना कर सिद्धियां प्राप्त की थी। वामाखेपा जैसे महान तांत्रिक जिन्हे तारा मां ने स्वयं स्तंपान कराया था, वह इस स्थान के प्रथम पूज्य महामानव है।
तंत्र के षट्कर्म का अध्ययन ईसमें साधना करके किया जा सकता है।
Tara maa त्वरित फल देने वाली सिद्धिदाई दयामई माँ है किंतु ध्यान देने योग्य बात यह कि मां तारा की साधना एक बहुत ही उच्च कोटि की साधना है, तारा मां की साधना को उच्च कोटि के किसी जानकर गुरुद्वारा जानकर और समझ कर उनके मार्गदर्शन में ही शुरू करना चाहिए बिना पूर्ण जानकारी और सही मार्गदर्शन के बिना तारा मां की साधना करना नुकसानदायक साबित हो सकता है क्योंकि मां तारा एक बहुत ही उग्र शक्ति है और विनाश की भी देवी मानी जाति है।
Maa Tara ke Bhairav -
जैसा कि हम जानते हैं कि शक्ति के किसी भी स्वरूप में पूजन या साधना में उनके भैरव का एक महात्वपूर्ण स्थान होता है वैसा है मां तारा की साधना में उनके भैरव अक्षोभ्य शिव है।
किसी भी पूजा या साधना से पहले गुरु स्मरण और गणपति स्मरण किया जाता है । तारा मां के जो शिव है उनके मंत्र ॐ स्त्री ॐ अक्षोभ्य शिव स्वाहा इस मंत्र का एक माला जप कर लेना चाहिए।
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Maa tara mantr, मां तारा मंत्र-
- मां तारा का एकाछरी मंत्र - स्त्रीं
- ह्रिं स्त्रीं हूं फट
- ॐ ह्रिं स्त्रीं हूं फट्
- श्रीं ह्रिं स्त्रीं हूं फट्
- ऐं ह्रिं स्त्रीं हूं फट्
घोर रूपे महारावे सर्व शत्रु भयंकरी
भक्तेभ्यो वरदे देवी त्राही मां शरणागतं
Note -
यह लेख लिखने का हमारा उद्देश्य यह है कि हम आपको मां तारा के बारे में जानकारी देना और तारा मां की साधना के बारे में प्राथमिक जानकारी उपलब्ध कराना है। विस्तृत जानकारी के लिए आप हमें कमेंट सेक्शन में लिख सकते हैं या हमारे ईमेल एड्रेस पर संपर्क कर सकते हैं ।
🚩 धन्यवाद 🚩
FAQ -
- तारा मंत्र कितने होते हैं?
- शास्त्रों में तारा मां के बहुत से मंत्र मिलते हैं। उनमें से कुछ प्रमुख मंत्रों को हमने इस लेख में लिखा है कृपया उसे पढ़ें।
- मां तारा की पूजा कैसे करें?
- मां तारा की पूजा दक्षिणचार पद्धति (वैदिक) और वामाचार (तांत्रिक) पद्धति दोनों तरीके से होती है पर उनकी पूजा वामाचार पद्धति द्वारा ज्यादा प्रसिद्ध है बाजार में उपलब्ध दोनों पद्धतियों की किताबों में से आप किन्ही का भी चुनाव कर सकते हैं।
- तारा मां कौन है?
- मां तारा 10 महाविद्याओं में से 1 महाविद्या हैं इनकी उत्पत्ति की कहानी हमने पिछले लेख में लिखा है उसका लिंक ऊपर दिया गया है कृपया उसे जरूर पढ़ें।
- तारापीठ क्यों प्रसिद्ध है?
- तारापीठ तांत्रिक साधनाओ के लिए प्रसिद्ध है मनोकामना पूर्ति के लिए भी लोग मां तारा के धाम पर आते हैं। जो बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित है।