क्या आप चाहते हैं जीवन में कुछ विशेष ? हर व्यक्ति शक्ति और सामर्थ्य चाहता है। बिना शक्ति और सामर्थ्य के जीवन में कुछ भी नहीं हो सकता इसीलिए साधना के क्षेत्र में भी शक्ति साधना का अपना एक विशेष महत्व है, तो कुछ विशेष पाने के लिए साधना भी विशेष करनी होगी, ऐसी ही साधनाओं में से एक साधना है Matangi devi mantr की साधना। इस लेख में हम Matangi की साधना विधि matangi mata के बारे में जानकारी आपको देने जा रहे हैं।
मातंगी माता परिचय -
विशिष्ट साधनाओ मे दस महाविद्या की साधना सर्वोपरी मानी जाति हैं। दसो महाविद्याओं में मातंगी नौंवे स्थान पर आती है और सिद्ध विद्याओं में यह दुसरे स्थान पर आती है। श्यामला, त्रिनेत्रा, रत्नसिंहासनस्था, चतुर्भुजा, पाश-खड़ग-खेटक-अंकुशधारिणी मातंगी भक्तों को अभय और अभीष्ट प्रदान करती है।
महात्रिपुरसिद्धांत में कहा है कि-श्रीविष्णु ने पुराकाल में मातंगी देवी की उपासना की थी। उसी के प्रभाव से वे भाग्य, सुख, कान्ति, स्थिति आदि से सम्पन्न हुए। मातंगी की साधना दक्षिणाम्नाय(दक्षिणाचार) और पश्चिमाम्नाय(वामाचार) दोनों के क्रम से होती है।
सर्वप्रथम मतंग ऋषि द्वारा पूजित एवं सिद्धि प्राप्त करने के कारण इन्हें मातंगी नाम से जाना गया। मूल रूप से माता मातंगी काली कुल से संबंध रखती है।भगवती मातंगी के कई स्वरूप हैं सुमुखी, उच्छिष्ट चांडालिनी, उच्छिष्ट मातंगी, राजमातंगी, कर्ण मातंगी, लघु श्यामा, वश्यमातंगी, मातंगेश्वरी, ज्येष्ठ मातंगी।
मातंगी साधना विशेषता -
वैसे तो मातंगी की साधना हर मनोकामना को पूर्ण करने वाली है परन्तु विशेष रूप से कला से जुड़े लोगों के लिए यह साधना वरदान के रूप में आती है, इनके अलावा वाद विवाद, राजनीति और ज्योतिष के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए भी यह साधना विशेष फलदाई मानी गई है।
यह भी कटू सत्य है कि इस संसार में आपके द्वारा किसी का कुछ अहित न करने पर भी लोग आपसे द्वेश करते हैं और आपके लिए समस्या उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं, ऐसे में अपने शत्रुओं का स्तंभ, उच्चाटन इत्यादी भी मातंगी साधना के द्वार संभव हो जाता है।
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दस महाविद्या की साधना में गुरु का एक विशेष स्थान होता है अत: यह साधनाएं करने से पहले आपको किसी योग्य गुरु द्वारा दीक्षित होना अनिवर्या है परन्तु आज के युग में योग्य गुरु का मिलाना संभव नहीं जान पड़ता है इसलिए इस सृष्टि में सभी के गुरु श्री शिव जी को अपना गुरु मानकर यह साधना शुरू की जा सकती है।
मातंगी साधना के भैरव -
शक्ति साधना के किसी भी स्वरूप का पूजन उनके भैरव के पूजन के साथ ही होता है हर एक शक्ति के भैरव अलग-अलग हैं
मातंगी मां की साधना में उनके पति शिव जी को मतंग शिव के नाम से जाना जाता है इसीलिये मातंगी देवी की साधना से पहले उनके पति को नमन करना ध्यान करना अनिवर्या है "
ॐ श्री मतंग सदाशिवाय नमः" इस मंत्र के द्वार सबसे पहले मातंगी माता के पति का स्मरण, नमन, और ध्यान करना चाहिए।
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जैसे कि हम किसी भी शक्ति की पूजा के पहले उनके गायत्री का जाप करते हैं ठीक उसी प्रकार मातंगी माता की गायत्री का भी जाप कर लेना चाहिए जो कि इस प्रकार है -
मातंगी माता की गायत्री -
- ॐ सुप्रियाय विदमहे कामेश्वरेय धीमही तन्नह श्यामा प्रचोदयात
- ॐ सुप्रियाय विदमहे क्लिम कामेश्वरेय धीमही तन्नह श्यामा प्रचोदयात
यह दो गायत्री मंत्र है जिसका प्रयोग अलग-अलग कामना के लिए किया जाता है इनहें ध्यान से पढ़ने पर आपको ज्ञात हो जाएगा कि कब किस गायत्री का प्रयोग करना है, जिस प्रकार किसी घर को बनाने के लिए नीव जरूरी होती है उसी प्रकार किसी भी साधना या मंत्र जप के पहले गायत्री का जप करना नींव का काम करता है इससे आपको साधना में बहुत सहयोग मिलता है।
मातंगी ध्यान मंत्र -
श्यामां शुभ्रांशुभालां त्रिकमलनयनां रत्नसिंहासनस्थां, भक्तामीष्टप्रदात्रीं सुरनिकरकरासेव्यकञ्जाङ्घ्रियुग्माम् । नीलाम्भोजांशुकान्ति निशिचरनिकरारण्यदाबाग्निरूपां, पाशं खड्गं चतुर्भिर्वरकमलकरैः खेटकञ्चांकुशञ्च ॥ मातङ्गीमावहन्तीमभिमतभयदां मोदिनीं चिन्तयामि ॥'
एक अन्य ध्यान मंत्र इस प्रकार भी है-
श्यामाङ्गीं शशिशेखरां त्रिनयनां सद्रत्नसिंहासने संस्थां रत्नविचित्रभूषणयुतां संक्षीणमध्यस्थलाम् । आपीनस्तनमण्डलां स्मितमुखीं वन्दे दधानां क्रमाद्, वेदैर्वाहुभिरङ्कुशासिलतिके पाशं तथा खेटकम् ॥
ऋष्यादिन्यास -
दक्षिणामूर्तिऋषये नमः (शिरसि), विराट्छन्दसे नमः (मुखे), श्रीमातंगी देवतायै नमः (हृदये), ह्रीं बीजाय नमः (गुह्ये) हूं शक्तये नमः (पादयोः), क्लीं कीलकाय नमः (नाभौ), वनियोगाय नमः (सर्वांगे)।
कर-हृदयादिन्यास-
हीं, क्लीं, हूं, ह्रीं, क्लीं, हूं (इन बीजों से करें)।
विनियोग विधि -
किसी भी मंत्र जप से पहले उस मंत्र का विनियोग किया जाता है विनियोग विधि यह की एक आचमनी जल विनियोग मंत्र को पढ़कर भूमि पर छोड़ दे -
विनियोग मंत्र –
अस्य श्रीमातंगीमन्त्रस्य दक्षिणामूर्तिऋषिः । विराट्छन्दः । श्रीमातंगो देवता। ह्रीं बीजं । हूं शक्तिः । क्लीं कीलकं मम सर्ववांछितार्थसिद्धये विनियोगः ॥
मंत्र
- ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्ये फट् स्वाहा
इस मंत्र साधना से कविता, वाद विवाद, स्तम्भन की शक्ति प्राप्त होती है इस मंत्र के सिद्धि से साधक के धन संबंध समस्याएं खत्म होती हैं, यह सिर्फ एक मंत्र है, मातंगी देवी की साधना के बहुत सारे मंत्र शास्त्रों में मिलते हैं जिनका प्रयोग अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग मंत्रों के द्वारा होता है, महाविद्याओं की साधना का स्वरूप बहुत ही विस्तृत है जिसमे अंग न्यास, हृदयादिन्यास, कर न्यास, इसके बाद जप, हवन, तर्पण, मार्जन इत्यादी का विधान हैं।
conclusion -
हमारा उदेश्य श्रधालुओं को मातंगी साधना की शुरुआत करने के लिए प्राथमिक जानकरी देना है, उन्हे धर्म पथ पर प्रेरित करना तथा उनका मार्गदर्शन करना है, साधना की विस्तृत जानकारी के लिए आप हमसे ईमेल द्वारा संपर्क कर सकते हैं।
🚩धन्यवाद 🚩
FAQ -
- मातंगी किसकी देवी है?
- मातंगी किस दिन है?
- मातंगी से प्रार्थना कैसे करते हैं?
ANS - यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है इस विषय के ऊपर हमने एक विशेष लेख लिखा है उसे आपको अवश्य पढ़ना चाहिए - पूजा साधना का फल क्यों नहीं मिल रहा ?
- What is the mantra of Maa Matangi?
ANS - In this article boath Mantra worship method of matangi Mata is written please read that.
- कौन सी महाविद्या सबसे शक्तिशाली है?